asha bhosle log aurat ko şarkı sözleri
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रूह भी होती हैं उसमे ये कहाँ सोचते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रूह क्या होती हैं इससे उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तकाजों का कहा मानते हैं
रूह मर जाये तो
इस हकीकत को समझते हैं न पहचानते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
कितनी सदियों से ये वहशत का चलन जारी हैं
कितनी सदियों से हैं क़याम ये गुनाहो का रवा
लोग औरत की हर एक चीख को नग्मा समझे
हो कबीलो का ज़माना हो के शहरो का समां
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
जरब से नस्ल बड़े जुलम से तन मेल करे
ये अमल हम हैं बेइलम परिंदो में नहीं
हम जो इंसानो के तहजीबों लिए फिरते हैं
हम सा वेह्शी कोई जंगल के दरिन्दो में नहीं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
एक मैं ही नहीं क्या जानिए कितनी होंगी
जिनको अब आईना ताकने से झिझक आती हैं
जिनके खाबो में न सहरे है न सिन्दुर न सेज
और न मुरदा हु के जीने ग़मो से छूटउ
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
एक बुझी लूह लुटे जिस्म के ढांचे में लिए
सोचती हूँ कि कहाँ जाके मुक्कदर फोडू
मैं न जिन्दा हु
और न मुरदा हु
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
कौन बतलायेगा मुझको किसे जाकर पूछो
ज़िन्दगी क़हर के सांचो में ढलेगी कब तक
कब तलक आँख न खोलेगा ज़माने का ज़मीर
जुल्म और जब्र की ये रीत चलेगी कब तक
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं