dada bhagwan shuddha prem ki murat ke şarkı sözleri
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए धन्यभाग कि दादा के दर्शन हुए
जिनकी निरंतर प्रेम रस धार बहे कभी घटे ना बढ़े इक धार रहे।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए धन्यभाग कि दादा के दर्शन हुए।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए
जिसमें अपेक्षा नहीं कोई स्वार्थ नहीं उनकी दृष्टि में कोई दोषित नहीं
जिसमें अपेक्षा नहीं कोई स्वार्थ नहीं उनकी दृष्टि में कोई दोषित नहीं
वीतराग पुरुष का ये प्रेम अनुपम जग को लुटाएँ पर न होता कम।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए
जाति देश लिंगभेद पाप पुण्य से पर ये प्रेम झरना बहे एक सा सब पर
जाति देश लिंगभेद पाप पुण्य से पर ये प्रेम झरना बहे एक सा सब पर
मात्र कल्याणी भाव से ओतप्रोत परमात्मा प्रेम के दादा अखंड स्त्रोत।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए
आसक्ति के सागर में अनासक्त प्रेम संसारी वेश में प्रकट भगवत प्रेम
आसक्ति के सागर में अनासक्त प्रेम संसारी वेश में प्रकट भगवत प्रेम
उनके प्रेम से लोहा भी पारस बने उनकी करुणा से पापी के पाप धुलें।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए
उनकी समता से टेढ़े हो जाएँ सीधे लघुतम समक्ष सब अहंकार झुकें
उनकी समता से टेढ़े हो जाएँ सीधे लघुतम समक्ष सब अहंकार झुकें
इस प्रेम की विशालता में समाए संसार इस अमृत को पीकर हो जाए भव पार।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए
बुद्धि के भेद निकल जाएँ दादा हम भी अभेद प्रेमी बन जाएँ ओ दादा
बुद्धि के भेद निकल जाएँ दादा हम भी अभेद प्रेमी बन जाएँ ओ दादा
ऐसी कृपा बरसाना महात्माओं पर विश्व एक परिवार सपना सच हो दादा।
शुद्ध प्रेम की मूरत के दर्शन हुए