darzi rog şarkı sözleri
अरे पड़ गया जोग
ज़लील है भोग
नए नए लोग देखे
लग गया रोग
डर गए वह
घर गए वह
जहाँ भी चले गए
मर गए वह
छीनी है हसी
चुप रह गयी
ज़िंदा हूँ मगर
सांसें बंद हो गयी
कैसा है ये मोह
दिख गया जो
उसी के ही पीछे अब
पड़ गया वह
आ
आ
अरे लग गया रोग
शाम सवेरे दिल में
अंधेरा रहता है
काटती हूँ मैं खुदको
घाव गहरा लगता है
देखती हूँ शीशे में
आसूं बह जाती हूँ
मोटी या फिर काली
सबको मैं लगती हूँ
ली है मेरी जान
हूँ मैं परेशान
दिल भी है टुटा
अब टूटे अरमान
रोया आसमान
भीगा है जहान
मिट्टी भी है भूरी
भूरा मेरा है नकाब
कैसा है ये रोग
लगता है रोज़
जाता है नहीं कहीं
है ये घनघोर
चलती हवा
उड़ता बयान
पूछती हूँ अब भी
क्या नहीं मैं इंसान
आ
आ
क्या नहीं मैं इंसान
शाम सवेरे दिल में
अंधेरा रहता है
काटती हूँ मैं खुदको
घाव गहरा लगता है
देखती हूँ शीशे में
आसूं बह जाती हूँ
मोटी या फिर काली
सबको मैं लगती हूँ
जैसी भी हूँ काफी
मैं कब हो पाउंगी
खुद को ही मैं माफ़ी
अब कब दे पाउंगी
डूब मरूंगी लेकिन
मैं सब सह जाउंगी
खुद से ही मैं नफरत
अब ना कर पाउंगी