g. v. prakash kumar sooraj hai kahaan şarkı sözleri
सूरज है कहाँ सर में आग रे
नागिन तितलियाँ अब चल भाग रे
मेरी आँख में लोहा है क्या
मेरी रोटियों में कांच है
गिण मेरे उंगलियां
क्या पूरी पांच है
यह मेरी बन्दूक देखो
यह मेरा सन्दूक है
घास जुंग जिस्म पानी
कोयला मेरी भूक है
चौक मेरा गली
मेरी नौकरी बत्ती मेरी
धुल दर्दी सॉना रद्दी
धूप और सर्दी मेरी
मेरी पार्किंग है
या मेरी सीट है
तेरा माथा है
यह मेरी एट है
मेरी मिटटी से मेरी
मिटटी तक आ रहे हैं जो
साड़ी रैलों से रंग
सिरफिरे रिवाज़ों से
मेरी बोली से मेरे मेलों से
कीलें चुभती है
झीलें दिखती है
लकड़ियां गीली नहीं
है तेल है टीली यहीं है
मेरा झंडा तरीका
मेरा सच सही
गर कोई आवाज़ उठी
गाड़ दूँगा मैं यही
मैं यहां पहले खड़ा
था है गेहरा मैदान
आज़माले लाठियों पे या तेरा
यह किताबें एक पंप
है वे लोग सारे सांप है
जहां लातके हमामों
में मोरालिटी की भाप है
मैं बताऊँगा तुझे
तोह जीन्स पहने कितने तंग
कौनसी बिल्डिंग में तू
रह सकती है कब किसके संग
रात के कितने बजे
कैसे चले किससे मिले
कब पलट कर मार दे
कब चुप रहे कब कब चले
है यह वैलेंटाइन क्यों
तू ने पी वाइन क्यूँ
तेरे पब से उसके रब्ब से
मुझको प्रॉब्लम है सबसे
हमने उनको खूब
धोया जो रूई से लोग थे
बन गए उनके गुब्बारे
जो सुई से लोग थे
जिसकी चादर हम से
छोटी उसकी चादर छीन ली
जिसकी छत पे चढ़ गए
हम उसको सीढ़ी तोड़ दी
इश्तिहारों में ख़ुशी
है और घर आता नहीं
दे मेरा चाक़ू मेरा
माँ कब से कुछ काटा नहीं
बच्चे खेलते थे
जहां पिछले जून में
अब बास्ते दीखते वहाँ
भीगे खून में
पड़ रही थी एक बच्ची
सड़क पर भीड़ थी
सबका न कोई डर था ज़र्रोरी
सब ने मार दी छोड़ दी.

