kartik ojha rahu kavcham şarkı sözleri

॥ श्री राहुकवचम् ॥ प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिनम् । सैंहिकेयं करालास्यं लोकानामभयप्रदम् ॥ १॥ नीलाम्बरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः । चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरिरवान् ॥ २॥ नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम । जिह्वां मे सिंहिकासूनुः कण्ठं मे कठिनाङ्घ्रिकः ॥ ३॥ भुजङ्गेशो भुजौ पातु नीलमाल्याम्बरः करौ । पातु वक्षःस्थलं मन्त्री पातु कुक्षिं विधुन्तुदः ॥ ४॥ कटिं मे विकटः पातु ऊरू मे सुरपूजितः । स्वर्भानुर्जानुनी पातु जङ्घे मे पातु जाड्यहा ॥ ५॥ गुल्फौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः । सर्वाण्यङ्गानि मे पातु नीलचन्दनभूषणः ॥ ६॥ राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो भक्त्या पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् । प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायुरारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥ ७॥ ॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसञ्जयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं सम्पूर्णम् ॥
Sanatçı: kartik ojha
Türü: Belirtilmemiş
Ajans/Yapımcı: Belirtilmemiş
Şarkı Süresi: 1:18
Toplam: kayıtlı şarkı sözü
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