sadil ahmed zaroori tha şarkı sözleri
बताओ याद है तुमको
वो जब दिल को चुराया था
चुराई चीज़ को तुमने
ख़ुदा का घर बनाया था
वो जब कहते थे मेरा
नाम तुम तस्बीह में पढ़ते हो
मोहब्बत की नमाज़ों
को कज़ा करने से डरते हो
मगर अब याद आता है
वो बातें थी महज़ बातें
कहीं बातों ही बातों में
मुकरना भी ज़रूरी था
तेरी आँखों के दरिया का
उतरना भी ज़रूरी था
ज़रूरी था की हम दोनों
तवाफ़े आरज़ू करते
मगर फिर आरज़ूओं का
बिखरना भी ज़रूरी था

